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आजादी का अमृत महोत्सव’ कार्यक्रम का आयोजन ।

 

भारतवर्ष की मिट्टी में ज्ञान और दर्शन की महान परंपरा समाहित – प्रो. प्रसून दत्त सिंह

 

 

‘आजादी का अमृत महोत्सव’ कार्यक्रम श्रृंखला के अंतर्गत आज सोमवार को जमशेदपुर वर्कर्स कॉलेज के संस्कृत एवं दर्शनशास्त्र विभाग के संयुक्त तत्वावधान में व्याख्यान का आयोजन किया गया। व्याख्यानमाला श्रृंखला के 40 वीं कड़ी में “भारतीय ज्ञान परंपरा” विषयक विशिष्ट व्याख्यान के आमंत्रित मुख्य वक्ता के रूप में महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय मोतिहारी ,बिहार के संस्कृत प्राध्यापक सह मानविकी एवं भाषा संकाय प्रमुख ‘प्रो.प्रसून दत्त सिंह’ ने सभी को संबोधित किया । उन्होंने अपने सारगर्भित वक्तव्य में कहा कि भारतवर्ष की मिट्टी में ज्ञान और दर्शन की महान परंपरा समाहित है। जिसमें वैदिक ऋचा से लेकर आदि शंकराचार्य के अद्वैत दर्शन तक का सार आ जाता है । सारे विश्व को वसुधैव कुटुंबकम के सूत्र के साथ अपना परिवार मानने का संदेश भारतवर्ष ने दिया। प्राचीन काल की शिक्षा प्रणाली ,ज्ञान, परंपराएं और प्रथाएं मानवता को प्रोत्साहित करती थीं। पुराण में ज्ञान को अप्रतिम माना गया है । ज्ञान,प्रज्ञा और सत्य की खोज को भारतीय विचार परंपरा और दर्शन में सदा सर्वोच्च लक्ष्य माना जाता था। भारत के तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला, बल्लभी, उज्जयिनी,काशी आदि विश्व प्रसिद्ध शिक्षा एवं शोध के प्रमुख केंद्रों में कई देशों के शिक्षार्थी ज्ञानार्जन के लिए आते थे। वैदिक काल की महिलाएं – मैत्रयी,ऋतम्भरा, अपाला गार्गी, लोपामुद्रा आदि की शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रसिद्धि थी। बोधायन , कात्यायन , आर्यभट्ट ,चरक, कणाद, वाराहमिहिर,नागार्जुन ,अगस्त्य भर्तृहरि, शंकराचार्य ,स्वामी विवेकानंद जैसे अनेकानेक महापुरुषों ने भारत भूमि पर जन्म लेकर विश्व में भारतीय ज्ञान परंपरा के समृद्धि हेतु अतुल्य योगदान दिया है। प्रो.सिंह ने कहा कि पिछले 75 वर्षों में भारत ने विभिन्न क्षेत्रों में महान सफलता को अर्जित किया है , उभरते राष्ट्रवाद के साथ सूचना प्रौद्योगिकी और विशेष ज्ञान आधारित उद्योगों में आज देश ने बड़ी छलांग लगा ली है । प्राचीन और सनातन भारतीय ज्ञान तथा विचार की समृद्ध परंपरा के आलोक में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 तैयार की गई है। प्राचीन भारत में शिक्षा का लक्ष्य पूर्ण आत्मज्ञान और मुक्ति के रूप में माना गया था। वर्तमान में हमें संपूर्ण शिक्षा प्रणाली को समर्थन और अधिगम को बढ़ावा देने के लिए पुनर्गठित करने की आवश्यकता होगी ताकि सतत् विकास के लिए 2030 एजेंडा के सभी महत्वपूर्ण लक्ष्य प्राप्त किया जा सके। व्याख्यानमाला के संरक्षक एवं महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ.सत्यप्रिय महालिक ने कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए मुख्य वक्ता सहित सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया एवं शुभकामनाएं दी। मंच का सफलतापूर्वक संचालन संस्कृत विभागाध्यक्ष एवं व्याख्यानमाला की संयोजिका डॉ.लाडली कुमारी तथा धन्यवाद ज्ञापन दर्शनशास्त्र के विभागाध्यक्ष डॉ अर्चना कुमारी गुप्ता ने किया और कार्यक्रम की परिकल्पना को मूर्त रूप दिया। इस अवसर पर वर्कर्स कॉलेज के शिक्षक ,शिक्षकेत्तर कर्मचारी तथा छात्र- छात्राओं के साथ देश के विभिन्न प्रांतों से शिक्षक शोधार्थी एवं विद्यार्थियों ने सम्मिलित होकर कार्यक्रम को सफल बनाएं।

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